भारतीय अपकृत्य विधि – Law of Torts in Hindi

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Tort शब्द लैटिन शब्द “tortum” से लिया गया हैं जिस का अर्थ हैं “wrong” or “injury”। अपकृत्य एक कर्तव्य का भंग हैं जिससे सिविल रॉंग होता हैं । जब किसी व्यक्ति के प्रति कर्तव्य का उलंघन होता हैं तो उसे अपकृत्य कहते हैं । तो आइये, इस लेख में हम भारतीय अपकृत्य विधि के बारे में चर्चा करेंगे ।

अपकृत्य क्या हैं

सब से पहले यह समझते हैं कि अपकृत्य क्या हैं ? हर व्यक्ति का कर्तव्य हैं के वह अपना कार्य करते समय दूसरे व्यक्ति कि सुख -सुविधा में अर्चन पैदा ना करें, या कार्य करते समय दूसरे का कोई नुकसान या गलत असर ना हो । यदि किसी व्यक्ति को कार्य के परिणाम में किसी दूसरे व्यक्ति को नुक्सान या हानि पहुँचाता हैं, तो उस नुक्सान करने वाले व्यक्ति को नुक्सान पहुंचने वाले व्यक्ति को क्षतिपूर्ति देने का बाध्य होता हैं । इस कृति को अपकृत्य कहते हैं ।

जब कोई व्यक्ति अपकृत्य करता हैं तो उसे अपकृत्यकर्ता (tortfeasor) कहते हैं । यदि इस कार्य में एक से ज़्यादा लोग शामिल होते हैं तो इसे संयुक्त अपकृत्यकर्ता (joint tortfeasor) कहते हैं । अपकृत्यकर्ता पीड़ित को क्षतिपूर्ति देने का बाध्य होता हैं ।
अतः, अपकृत्य किसी भी व्यक्ति को अनुशासित (disciplined) तरह से कार्य करने और जीने का निर्देश देती हैं ।

Tort “यूबी जस इबी रेमेडियम” “Ubi jus ibi remedium” सिद्धान्त पर आधारित हैं जिस का मतलब हैं “जहां अधिकार हैं , वहां उपाय हैं ” । अर्थात , कोई कार्य गलत नहीं यदि उस के लिए कोई उपाय नहीं हो ।

अपकृत्य विधि की विशेषताएँ

आइये जानते हैं अपकृत्य कि कुछ विशेषताएँ :

  • अपकृत्य विधि किसी व्यक्ति के अधिकारों के उलंघन से संबंधित हैं । हर व्यक्ति को आपस में साधारण कानून के अनुसार कर्तव्य और अधिकार उत्पन्न होते हैं , जिस का उलंघन करने पर अपकृत्य विधि लागू होती हैं ।
  • जो कर्तव्य पूर्णरूप से संविदा भंग करने के अन्तर गत होते हैं, वह अनुचित कर्तव्य अपकृत्य नहीं कहलाते हैं।
  • अपकृत्य का उपचार प्राप्त करने के लिए दीवानी न्यायलय (civil court) में क्षतिपूर्ति के लिए एक वाद दायर कर सकते हैं ।
  • अपराध और अपकृत्य दोनों भिन्न हैं।
  • अपकृत्य का मुख्‍य उद्देश्य क्षतिपूर्ति हैं, मतलब, पीड़ित व्यक्ति को जितना होसकता हैं उस अवस्था में लें आना जिस में वह अपकृत्य से पहले था ।
  • अपकृत्य में हमेशा अनिर्धारित क्षतिपूर्ति (unliquidated damages) कि माँग कि जाती हैं ।
  • यह नई साधारण कानून (common law) विधि हैं ।
  • यदि किसी कार्य कि वजह से आपका नुक्सान या क्षति होता हैं तो अपकृत्य विधि का उपयोग किया जाता हैं ।
  • अपकृत्य का प्रतिकार क्षतिपूर्ति द्वारा होता हैं ।
  • अपकृत्य ना ही किसी संविधान (Constitution) के उलंघन से संबंधित हैं और ना ही वह आपराधिक (criminal) हैं ।
  • अपकृत्य एक सिविल दोष हैं जिस में अपरिनिर्धारित (unliquidated) नुक्सान के लिए कॉमन लॉ अनुयोजन हैं । यह संविदा भंग (breach of contract) , या कानून भंग आदि सामयिक बाधाओं का भंगीकरन नहीं हैं ।

अपकृत्य विधि के दायित्व

अपकृत्य विधि के यह दायित्व हैं –

  • पीड़ित व्यक्ति के अधिकार को पहचानना ;
  • सब के अधिकारों कि रक्षा करना ;
  • अपकार दुहराना या जारी रखने से बचाना, जैसे ; निषेधाज्ञा आदेश / injunction order.
  • किसी भी संपत्ति को उस के सही अधिकारी/ मालिक तक वापस पहुँचाना, जैसे ; यदि कोई संपत्ति गलत तरह से उस के सही मालिक से छीन ली गई हो ।

अपकृत्य के ज़रूरी तत्व

अपकृत्य के 3 ज़रूरी तत्व हैं जैसे ;

1. गलत कार्य करना (wrongful act) या कार्य ना करना; चूक (Omission);
2. विधि द्वारा लागू किया गया कर्तव्य का उलंघन;
3. उस कार्य से अपकार या क्षति होना चाहिए ; और उस अपकृत्य का प्रतिकार क्षतिपूर्ति द्वारा होना चाहिए ।

अपकृत्य के प्रकार

अपकृत्य 3 प्रकार के हैं, जैसे;

1. जानबूझकर अपकृत्य – किसी गलत कार्य से जानबूझकर किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने को जानबूझकर अपकृत्य कहते हैं । जैसे; हमला, गैरकानूनी कैद, रूपान्तरण (conversion), अतिचार (trespass), धोखा, उपद्रव (nuisance), आदि ।

2. लापरवाह अपकृत्य – लापरवाही से गलत कार्य करना जिससे किसी दूसरे व्यक्ति को हानि या नुक्सान हो जाए, तो उसे लापरवाह अपकृत्य कहते हैं । जैसे; ट्रक दुर्घटना , गाड़ी से दुर्घटना , आदि ।

3. सख़्त दायित्व (strict liability) अपकृत्य – सख़्त दायित्व में कर्ता को अपने कार्य के लिए ज़िम्मेदार रहता हैं चाहे उसने वह कार्य जानबूझकर किया हो या नहीं । जैसे; खतरनाक जानवर रखने वाले उन के हमले के लिए बाध्य हैं, यदि कोई व्यक्ति कि औषधि बनाने कि कम्पनी हैं तो वह यदि कोई गलत उत्पाद बन जाए तो वह उस कार्य के लिए सख़्त उत्तरदायी होगा, आदि ।

अपकृत्य के सिद्धान्त

अपकृत्य के कुछ सिद्धान्त हैं ; जैसे

क्षतिपूर्ति – compensation – अपकृत्य के लिए सिविल कोर्ट में सहायता (relief) मिलती हैं क्षतिपूर्ति/ प्रतिकर के रूप में जैसे क्षति damages or निषेधाज्ञा injunction।

चोट कि अवधारणा – Concept of injury – क्षति damages or हानि/ चोट (injury) एक जैसे नहीं हैं, दम्नुम साइन इंजुरीआ और इंजुरीआ साइन दम्नुम । दम्नुम साइन इंजुरीआ (Damnum Sine Injuria) में क्षति होती हैं पर कोई हानि नहीं होती या उस के अधिकार का नुक्सान नहीं होता ऐसे में टॉर्ट के लिए उत्तरदायी नहीं होगा । अथवा , इंजुरीआ साइन दम्नुम (Injuria Sine Damnum) में आपके अधिकार कि हानि या इंजरी होती हैं पर कोई क्षति नहीं होती । इस स्थिति में क्षति ना हो तब भी कार्यकर्ता उत्तरदायी हैं क्योंकि प्रतिवादी के अधिकार का उलंघन हुआ हैं ।

सबूत का भार /Burden of proof – अपकृत्य के होने को साबित करने के लिए यह बात होनी चाहिए –
• प्रतिवादी का वादी के प्रति (duty to take care) सावधान रहने का कर्तव्य;
• कर्तव्य का भंग;
• वादी को इंजरी पहुँचना;
• कर्तव्य भंग के कारण वादी का नुकसान या हानि पहुँचना ।

प्रतिस्थानिक दायित्व /Vicarious liability – यदि प्रतिवादी अपकृत्य कर्ता हैं अपने उच्च अधिकारी के मार्ग पर चलते हुए या अपना कर्तव्य निभाते हुए उसे कोई अपकृत्य हो जाता हैं । तब वह अधिकारी प्रतिस्थानिक बाध्य होगा । जैसे यदि कोई डिलीवरी बॉय सामान पहुँचाते समय कोई घात (accident) कर देता हैं, तब उस स्थिति में कम्पनी भी समान रूप से उत्तरदायी होगी ।

संयुक्त लापरवाही /Contributory negligence – जब वादी किसी गलत कार्य में भागीदारी करता हैं, तब इस स्थिति में वादी ने जानबूझकर उस गलत कार्य में भागीदारी कि इस भागीदारी करने कि वजह से क्षतिपूर्ति उपलब्ध नहीं कर सकता । जैसे; यदि कोई व्यक्ति किसी चलती हुई मशीन को हाथ लगाए, हालाँकि वहां खतरा हैं चेतावनी दी गई हैं, तो वह क्षतिपूर्ति उपलब्ध नहीं कर सकता क्योंकि उसने गलती जानबूझकर कि हैं ।

संयुक्त और कई दायित्व / Joint and several liability – जब किसी कार्य में दो से ज़्यादा लोग जुड़े होते हैं तो वह सब उस कार्य के लिए बाध्य रहेंगे ।

आत्मरक्षा /Self defense – प्रतिवादी किसी अपकृत्य मुकदमे में बचाव के लिए कह सकता हैं के उसने वह कार्य अपने बचाव में किया हैं, या ख़ुद को या अपनी संपत्ति को हानि से बचने के लिए किया हैं ।

सामान्य बचाव

जब प्रतिवादी के अत्याचार के खिलाफ़ वादी कोई कारवाही करता हैं और उस के पास उस गलत को साबित करने के लिए सभी सबूत मौजूद हैं तो वह प्रतिवादी उत्तरदायी होगा । तथापि, यदि वादी के पास अपने बचाव के लिए कुछ दायित्व हैं जिन के करण वह अपने आप को आरोप से मुक्त कारा सकता हैं, तो इस बचाव को टॉर्ट के वाद में “ सामान्य बचाव” कहा जाता हैं ।

यह सामान्य बचाव इस प्रकार हैं –
• वादी ने गलत किया हैं,
• वोलेंटी नॉन फिट इंजुरिया या ‘सहमति’ का बचाव
• अपरिहार्य दुर्घटना / inevitable accident
• भगवान द्वारा कार्य
• निजी बचाव/ आत्मरक्षा
• गलती
• ज़रूरत
• सांविधिक प्राधिकारी /Statutory authority

निष्कर्ष

भारतीय अपकृत्य विधि UK विधि से अपनाया गया हैं । जब कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति कोई कार्य करता हैं, जिस कि वजह से उस दूसरे व्यक्ति को हानि पहुंचती हैं उस कार्य को अपकृत्य कहते हैं । यह हानि का मतलब हैं कानूनी अधिकार का उलंघन जिससे पीड़ित व्यक्ति को घात हुआ हो । टॉर्ट करता पीड़ित व्यक्ति के खिलाफ़ सिविल कोर्ट में मुकदमा दर्ज कर सकता हैं, जहां कोर्ट उस पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति द्वारा relief देने का आदेश देती हैं । यह क्षतिपूर्ति पैसों में, या निषेधाज्ञा (injunction) या फिर बहाली (restitution) के रूप में दी जा सकती हैं ।

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